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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 31)

शाम का वक़्त हो चला था, चारों तरफ किसी श्मशान की भांति सन्नाटा पसरा हुआ था। अरुण एक पहाड़ी चढ़ता हुआ नजर आ रहा था, उस टूटी ही पक्की सकड़ को निहारता हुए उसकी आँखें अनेकों भावों से भरी हुईं थीं। ऐसा लग रहा था मानो जैसे उससे उसका कोई गहरा संबंध हो, उसका दिल भारी होने लगा, कदमों में स्थिरता आने लगी, अचानक  वह उसी स्थान पर खड़ा हो गया। काफी देर तक डूबते हुए सूरज की लाली को निहारते रहा। उसका बेचैन मन अभी शायद यह निर्णय कर पाने में असमर्थ था कि उसे आगे बढ़ना भी चाहिए अन्यथा नहीं! अरुण ने अपने चारों ओर देखा, पंछी अपने बसेरों को वापिस लौट रहे थे। उनकी चहचहाहट ने वातावरण की शांति को भंग किया, अंधेरा घिरने लगा था, अरुण अब भी दुविधा में नजर आ रहा था।

'मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ? ये मेरे साथ ही क्यों होता है, मैं उसका सामना कर भी पाऊंगा या नहीं! पता नहीं! मैंने बहुत सी गलतियां की हैं और मैं जानता हूँ इस बार मुझे कोई गलती नहीं करनी है। मैं गलती नहीं कर रहा..!' अरुण ने गहरी साँस छोड़ा, उसके दिल और दिमाग ने एक निर्णय ले लिया था। उसने अपना कदम आगे बढ़ाया, वह थोड़ी दूर तक चलता रहा, अब वहां एक घर नजर आने लगा था। घर की बनावट बेहद शानदार थी मगर ऐसा लग रहा था जैसे बरसों से उसकी सफाई ना की गयी हो, दीवारों पर पेंट उधड़ा हुआ था, कहीं कहीं पर काई की मोटी परत नजर आ रही थी। थोड़ी ही देर में अरुण उस घर के पास पहुँच गया, काँपते हाथों से उसने दरवाजा खटखटाया।

"आ जाओ!" अंदर से एक स्वर उभरा। अरुण अंदर चला गया, वहां कुछ मेकैनिकल पार्ट्स एवं हार्डवेयर के सामान रखे हुए थे, साथ ही दूसरी ओर एक टेबल पर एक कंप्यूटर पड़ा हुआ था, कमरे में लाइट न थी। पूरा कमरा मकड़ी के जालों से भरा हुआ था, इस कारण लाइट जलने के बावजूद प्रकाश बहुत कम आ रहा था। अरुण की आँखे फटी हुई थी, उसकी आँखों से बरबस ही आँसू बह निकले।

"ये क्या हाल….!" अरुण की बात अधूरी ही रह गयी।

"तुम्हारे जरूरत का सामान पीछे मैदान में मौजूद है, अब तुम जा सकते हो।" अंदर से बेहद कठोर स्वर उभरा।

"पर…!"

"यू हैव टू गो राइट नाउ! आई डोंट वांट एनी टाइप ऑफ आर्ग्युमेंट!" बरसता हुआ सा बोला वह शख्स! उस शख्स के ये शब्द उसके के कानों के रस्ते जेहन में पिघले शीशे की भांति उतरते जा रहे थे। उसकी आँखों में आँसुओ का सैलाब उतर आया।

"थैंक यू!" कहता है अरुण बाहर निकल गया। उसने अपने आँसुओ को पोछा और घर के पीछे चला गया। वहां कोने पर उसे एक चाभी नजर आयी, उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभर आई।

"तू अब भी नहीं बदला मिराज!" अरुण ने चाभी को कोने से खींचकर निकालते हुए बोला।

आगे एक बैग मिला जिस में कुछ कपड़े रखे हुए थे। पास ही एक ब्लैक कलर की कावासाकी निंजा बाइक खड़ी थी। अरुण ने एक ओर गया, जहां एक छोटा सा रूम था। उसने जल्दी से कपड़े बदले, अब वह ब्लैक जीन्स, ब्लैक चेक शर्ट और ब्लैक चश्में में तैयार खड़ा था। उसके गोरे मुखड़े पर ये रंग बहुत ही ज्यादा सूट कर रहा था। मगर केवल अरुण ही जनता था कि उसने चश्मा अपनी आँखों की नमी छिपाने के लिए लगाया हुआ था।

अरुण काफी देर उस जगह को घूरता रहा, जैसे उसकी आँखों को किसी की तलाश हो।

'आखिर उसने फोन कहाँ रखा होगा?' अरुण का हाथ अपनी जीन्स की जेब में गया, वहां एप्पल का न्यू मॉडल फ़ोन रखा हुआ था, पीछे की जेब में एक मिनी गन भी रखा हुआ था, जिसे आसानी से छिपाकर कहीं भी ले जाया जा सकता था।

"होशियार!" अरुण के होंठो पर बरबस ही मुस्कान खिल गयी, उसने अपनी पिस्टल को कमर में खोंसा और बाइक स्टार्ट कर तेजी से वहां से निकल गया।

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"आखिर समझता क्या है वो अपने आप को, माना कि उसने उसका प्यार खो दिया, मगर इसका मतलब ये तो नहीं कि वो मुझे हर्ट करें! क्या अब किसी के पास उसे प्यार करने का हक़ नहीं है?" मेघना बुरी तरह से बिलख रही थी, उसे आदित्य का ये व्यवहार बहुत बुरी तरह चुभ रहा था। वह तकिए में मुँह छिपाए लगातार रोये जा रही थी। वो मेघना जो किसी से भी नहीं डरती थी, आज एक मामूली सी हरकत पर बच्चों की तरह रो रही थी।

'सारी गलती तेरी है मेघना! तूने वक़्त पर अपने जज्बात उससे जाहिर नहीं किये, बस डायरियां लिखती रह गयी, सोची कि बेस्ट फ्रेंड है कभी तो खोलकर देख ही लेगा। मगर ऐसा कभी नहीं हुआ वो आयी और चली गयी! आदि के हिस्से में आई थोड़ी सी खुशी.. वो उसकी वजह से थी मेघना, तुम्हारी वजह से आदि कभी मुस्कुराया तक नहीं! इसीलिए तुम डरती रही कि कहीं वो इनकार न कर दे। तुम बुद्धू हो, बेवकूफ हो! जब वो सिर्फ तुम्हारा था तब तुमने उसे खो दिया अब तो वो तुम्हारा हो ही नहीं सकता ईईई…!' अपने बालों को खिंचती हुई मेघना, खुद को ही कोसते जा रही थी, उसके आँसुओ से तकिया बुरी तरह भीग गया था।

'अगर तूने पहले बोल दिया होता तो न कभी वो सिया आती न कभी ही आज उसका यह हश्र होता। हे भगवान!' मेघना आज पागलों की तरह हरकते किये जा रही थी।

'मुझे लाइफ में आगे बढ़ना होगा पर मैं अपने दोस्त को छोड़ जाऊं इतनी खुदगर्ज नहीं! मैं अपना प्यार हासिल करना चाहती हूं मगर अब उसे आदि पर थोप नहीं सकती। वो अब कभी मेरा नहीं हो सकता। जाने क्यों प्यार हो गया मुझे उससे, बचपन से बिन माँ की पली मैं! पर जब भी वो मेरे साथ होता कभी किसी कमी का एहसास ही नहीं हुआ, उसका चिढ़ाना, मेरा खाना छीनकर खा जाना, सबसे शर्माना और मेघ कहकर बुलाना। सबकुछ बहुत प्यारा लगता था, वो मेरी इतनी परवाह करता था जैसे मेरी माँ हो, पापा के अलावा वहीं एक दूसरा था जो मेरा अपना था। पापा भी उसकी सच्चाई और ईमानदारी से बहुत प्रभावित थे, उन्होंने मुझे उसके साथ रहने खेलने से कभी नहीं रोका, धीरे धीरे हम बड़े हुए, उसकी परवाह बढ़ती चली गयी और मुझे प्यार होता चला गया। काश! काश! कि उसी वक़्त कह दी होती आदि आज से तुम सिर्फ मेरे हो! सिर्फ मेरे।

पर मैंने कहाँ हम सारी जिंदगी एक दूसरे के सुख दुख के साथी रहेंगे। तो उसने कहा बिल्कुल! सच्चा दोस्त वहीं होता है जो हर परिस्थिति में अपने दोस्त का साथ दे, और मैं सच्चा दोस्त हूँ। खूब अकड़ में आकर कही थी उसने ये बात, मुझे कुछ नहीं सूझा, मैं बस यही सोचकर खुश थी कि वो लाइफटाइम मेरे हर सुख दुख में मेरे साथ रहेगा। उसकी फैमिली भी मुझे उनसे अलग नहीं मानती थी, उसकी बहन से मेरी खूब पटती थी, हम दोनों मिलकर आदि को खूब तंग किया करते थे। फिर वो हादसा हुआ, उसके मम्मी पापा और बहन उस भयानक एक्सीडेंट के शिकार हो गए। उस वक़्त मेरे पापा हॉस्पिटल में एडमिट थे, आने में थोड़ा वक्त लगा पर तब तक आदि बुरी तरह टूट चुका था और मैं उसे सम्भाल न सकी, मेरी हर कोशिश नाकाम रही। महीने बीत गए अब आदि बदल चुका था, मेरी लाख कोशिशों के बावजूद उसके चेहरे पर एक स्माइल तक नहीं आयी। मैं हार गई थी, उधर पापा की भी टेंशन होती रहती थी। दोनों को संभालने का जिम्मा मेरे ऊपर था मगर मैं अंदर ही अंदर घुट रही थी, मेरे अंदर कुंठा ने घर कर लिया। उन दोनों से ज्यादा टूटी हुई मैं नजर आने लगी। मेरे पापा की तबियत में कुछ सुधार हुआ मगर आदि जस का तस ही रह गया।

अचानक एक दिन आदि को मुस्कुराते देखा, वह एक ठेले के पास बैठा पावभाजी खा रहा था, हम दोनों बचपन से वहीं बैठकर खाया करते थे। उसे मुस्कुराते  देखा तो जैसे मेरे अंदर जान आ गयी, कोई अपने प्यार को खुश देखकर कितना खुश होता है ये उस दिन पता चला था मुझे, मेरे तो जैसे पर निकल आये मैं तो यूँ आकाश में उड़ने लगी। भागी भागी मैं उसके पास गई, मेरे सारे सपने काँच की भांति जमीन से टकराकर छन्न से चकनाचूर हो गए। आदि एक लड़की के साथ था, दोनों एक ही प्लेट में खा रहे थे, आदि ने मेरा उससे परिचय कराया। उसका नाम सिया था, उसका आदि की ज़िंदगी नें आना मुझे अंदर से कुतर रहा था तो साथ ही साथ मैं खुश थी कि अब मेरा आदि फिर से मुस्कुराकर जियेगा और मैं उसके मुस्कान के सहारे जी लूंगा। सिया की कोशिशों ने अप्रत्याशित रंग लाया, वह अब बिल्कुल नॉर्मल होने लगा था। थोड़े ही दिन में हमें ट्रेनिंग के लिए जाना था, क्योंकि हमारे रिजल्ट्स आ चुके थे। सिया ने खुशी खुशी हमें विदा किया पर जैसे ही ट्रेनिंग कम्पलीट हुई, एक नई दुर्घटना आदि का इंतजार कर रही थी। उसकी आँखों के सामने सिया को मार डाला गया और वह कुछ न कर सका। मुझे जब यह खबर पता चली तो मेरे होश उड़ गए! मुझे लगा कि जाकर आदि को सम्भालना चाहिए, मगर उसे देखकर ऐसा लगा जैसे कुछ हुआ ही ना हो, आँखे लाल थी जैसे कितने देर से रो रहा हो, शायद मुझे देखकर आँसू छिपा रहा था। आदि के दिल पर कई बड़े सदमें थे, मगर जैसे ही अपॉइंटमेंट लेटर आया उसने ड्यूटी जॉइन करना कुबूल किया। उसने कहा 'ड्यूटी फर्स्ट!' उसकी इस बात ने मेरे दिल में उसका सम्मान और बढ़ा दिया। हम दोनों एक ही शहर में आये, चूंकि वह थोड़ा डिस्टर्ब था इसलिए उसे एस. आई. का पोस्ट मिला। इस नाते मैं उसकी सीनियर थी, आदि जॉब में लगा रहने लगा मगर जैसे ही वह मनहूस दिन निकट आने लगा, जिस दिन आदि ने सिया को खोया था वो बुरी तरह बेकाबू हो गया.. और अब फिर वही दिन आ रहा है।' उसकी आंखों के सामने बचपन से लेकर आजतक की हरेक घटना घूमने लगी, मेघना अपनी डायरी निकालकर उसे देखने लगी, उसकी आँखें आँसुओ से भरी हुई थी, पलके बुरी तरह भीग चुकी थी। उसका मासूम चेहरा आँसुओ से तर था। टप से एक बूंद उसकी डायरी पर टपका।

"कुछ तो सोच मेघना! कुछ तो कर अपने प्यार के लिए! हासिल न सही.. पहले की तरह जिंदादिल तो हो जाये।" मेघना अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आते हुए डायरी बन्द करके बोली।

"यार ये दिल का मामला बड़ा पेचीदा है, सबसे ज्यादा वही रुलाता है जो हंसाता है। मैंने कोई कुर्बानी नहीं दी है पर… काश! मैं आदि के लिए कुछ कर पाती। इस समय हालात भी इतने अच्छे नहीं है, बेफिजूल में मेरा प्रोमोशन कर दिया गया हैं। टेंशन से दिमाग गरम रहता है।" वाश बेसिन पर अपना मुँह हुए वह बोली, उसके चेहरे पर फेसवॉश लगा हुआ था।

"आपके दिल की मुराद पूरी हुई मैडम!" तभी उसके घर के गेट को तोड़कर एक हट्टा कट्टा आदमी उसके सामने आ खड़ा हुआ, मेघना अपने चेहरे पर लगे फेसवॉश को धोने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, मगर उस शख्स ने उसका हाथ पकड़ लिया।

"ये कैसा भद्दा मजाक है! बाहर निकलो वरना थाने में बंद करके थर्ड डिग्री चार्ज दूंगी।" मेघना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से से बोली।

"इतना परेशान क्यों होती है जानेमन! तेरे लिए थर्ड तो क्या पूरे थ्री सिक्सटी डिग्री चार्ज ले लूँ हाहाहा!" उस शख्स ने अपनी पकड़ और मजबूत कड़ते हुए कहा। मेघना के चेहरे पर फेस वॉश लगे होने के कारण वह सबकुछ क्लियरली दिखाई नहीं दे रहा था। वह हल्के से घूमीं, उस शख्स ने उसका जो हाथ पकड़ा हुआ था उसी के मदद से उछली और उसके थोबड़े पर शानदार किक जड़ दिया। वह बेचारा भन्नाया सा उसके हाथ को छोड़ दिया। मेघना के मुक्के ने उसके जबड़े को तोड़कर रख दिया। अब वो अपना मुँह धोने आगे बढ़ी मगर उस शख्स ने उसका पैर पकड़कर खींच दिया, वह धड़ाम से नीचे जा गिरी।

"देख जानेमन! मैं तेरी कू चोट नहीं पहुँचाना चाहता, अब तू शांति से चल मेरे साथ।" वह शख्स मेघना के हाथों की ओर बढ़ा। मेघना ने हल्की सी आँख खोली, उसने उसे अपनी ओर बढ़ते हुए महसूस किया, अगले ही पल वह शख्स उसके दोनों ओर टाँगे फैलाये मेघना के हाथों को दबोचने के लिए आगे बढ़ा। मेघना ने थोड़ी सी हरकत की, उस शख्स के हाथ उसके हाथों तक पहुँचने ही वाले थे, तभी मेघना ने अपने दोनों पैर जोड़कर उसकी दोनों टांगों के बीच जोरदार वार किया! वह आदमी बुरी तरह से बिलबिलाता तड़पता उससे दूर जाने लगा। वह फिर अपना चेहरा धोने आगे बढ़ी, तभी किसी ने उसकी गर्दन पर वार किया, अचानक उसके सामने अंधेरा घिर आया वह अपना होश खोती चली गयी।

"मैंने कहा था ये ऐसे काबू में नहीं आएगी। साला! बड़ा आया था हीरो बनने!" पहले आये उस शख्स को जोरदार लात मारते हुए दूसरा शख्स बोला, उसने मेघना को अपने कंधे पर उठा रखा था।

क्रमशः...


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2 Comments

Angela

11-Dec-2021 12:46 PM

Good

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